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Tuesday, October 20, 2015

गुफ्तगू

आओ बताएं तुम्हें ऐ दोस्त,

पवित्रता बेजान मूर्ति में नहीं, झुकने वाले मस्तक में है,
ढूंढते कहाँ हो देवालयों में?
भगवान् तो दिलों में बसते हैं|

रोने के डर से कहीं खुद से अनजान न रहना|
आंसू रुलाते ही नहीं, खुद से खुद को मिलाते भी हैं,

देखो कितनी अजीब सी बात है ना,
भरोसा जब होता है तो बेबुनियाद,
और जो टूट जाये तो खुदा पे भी नहीं होता|

निर्बाध हो सफ़र तन्हा ही क्यूँ न हो, एक अलग ही मज़ा है इसका,
आखिर ये हवाएं, खुला आसमान और झूलते पेड़ भी तो हमसफ़र ही हैं|

क्या बयाँ करें दर्द-ए-दिल तुमसे ऐ दोस्त,

उसकी कमर तोड़ मेहनत और एक कप चाय की तलब,
दिहाड़ी कितना जोखिम भरा काम है, हमने एक मजदूर की आँखों में देखा|

खामोश रहे जब उसने तौहीन की हमारी,
खता ही क्या थी मेरी, औकात ही क्या थी उसकी,
फिर भी बदला नहीं लेंगे,
इतने बड़े बन जायेंगे, वो खुद छोटा हो जायेगा |

क्या बताऊँ किस कशमकश में हूँ,

ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ – जी भर कर, खुल कर,
फिर भी रखता हूँ खुद को – बचा के, संभाल कर,
भावनाओं के ज्वार में कहीं बह ही न जाऊं|

हारने में पीड़ा होती है - हताशा और थकान,
उस जीत का भी क्या फायदा मगर – जिसमें “तुम” हार जाओ |

आओ कुछ फैसले करें दोस्त,

जो गुज़र गया वो वक़्त है, जो आएगा वो अवसर,
तय हमें करना है कि,
वक़्त की घड़ियाँ चुनें या अवसरों के पल|

जो लुट गए अमीर हुए, जो बिक गए फ़क़ीर,
हम इसी डर में बैठे हैं अब तक,
न जाने लुट के फ़क़ीर बनें या अमीर|

सीख मेरी ये ही है तुम्हें ऐ दोस्त,

तरक्की करना, आगे बढ़ना, चढ़ सीढियां डर सीढियां,
अपने अन्दर के मासूम को लेकिन कभी बड़ा न करना|

कविता पढने में सुन्दर लगती हो, सुनने में प्यारी,
जान लो मगर,
सच्ची कविता वो ही है दरअसल, जो लिखी नहीं “जी” जाती हो |

Wednesday, March 4, 2015

होली का दिन आया

मुस्कराते फूल हैं, पत्तियां हरी हरी,
मचली है हवा भी, मस्त मस्त चली चली,
खिली खिली धूप में, निकले हैं लोग देखो,
रंग-रूप-गंध से फिज़ां भी है भरी भरी,
मधुर सरस गान लिए, ढोलक की तान लिए,
आया आया, होली का दिन आया|

नफरत जो मन में है, आज उसे फेंक दो,
डर के छिपे असुर की, होलिका जला दो,
अच्छा हो या बुरा, मिलो सबसे खुलकर,
किसने था क्या कहा, सोच ये निकाल दो,
चलो मन में विश्वास लिए, जोश और यकीन से,
आया आया, होली का दिन आया|

हसरतों के कैद पंछियों को आज उड़ा दो,
चाहत की नदिया को आज रोकना नहीं,
प्रेम की मदिरा पिए, आशिकी के रंग को,
लगा दे उनके गालों पे, सजा दो उनके आँचल को,
प्यार भरे दिल मिले, रंगों में रंग भरे,
आया आया, होली का दिन आया|

नयी बहार लेके, नयी पुकार लेके,
आया आया, होली का दिन आया|

उमंग-तरंग लिए, मस्ती की मिठास भरा,

आया आया, होली का दिन आया|

Thursday, February 19, 2015

शिव-स्तुति


हे शंकर, हे आशुतोष,
भाव बाधा मेरी दूर करो|
कितना भ्रम है, कितनी माया,
दंभ,लोभ के कंट-जाल से,
व्याकुल मन है, शिथिल है काया,
ज्ञान दीप की ज्योति जलाकर,
ह्रदय-कलुष का नाश करो,
नमामि शिव, हे रुद्रेश्वर,
त्वम् शरने, अभयं कुरूम|
कितना संशय, कितनी असूया,
स्वार्थ भाव की अंधमता से,
संबंध विभाजित, मिलन अधूरा, 
प्रेम-सरित के सलिल प्रवाह से,
प्यासे मन को सिक्त करो,
नमामि शम्भू, हे गंगाधर,
त्वम् शरने, प्रमुदित कुरूम|

कितने स्वप्न, कितनी इच्छायें,
लक्ष्य की गुरुता से हतप्रभ, 
कर्तव्य अनिश्चित, दुर्गम पथ है,
दृढ़ निश्चय के अजस्त्र स्रोत से,
विजयी-पथ प्रशस्त करो,
नमामि पशुपति, हे नीलकंठ,
त्वम् शरने, धीरम कुरूम|

हे शंकर, हे आशुतोष,
भाव बाधा मेरी दूर करो|

Wednesday, February 11, 2015

कट गया तो क्या हुआ?

कट गया तो क्या हुआ?
वक़्त की रफ़्तार से पीछे छूटे,
अपने हुनर, तमाम कोशिशों और वर्षों के परिश्रम को,
ताक रख, घबडाये,
तुम सोचते हो,
कुछ फाडू करने का समय निकल गया,
और गन्दा वाला कट गया,
दोस्त! तुम्हें प्रतीत होता है ऐसा,
Basically, कटता नहीं है|

जब देखते हो दूर से ही उसे,
उसकी वो Hair Style, दीप्त चेहरा और सुगठित बदन,
उसके सामीप्य को उत्कंठित, अधरास्पर्श के अभिलषित,
स्मरण मात्र से ही हो जाते हो जीवंत,
कुछ missed calls, G-talk and WhatsApp के छिटपुट chat के बाद,
तुम्हें लगता है- बात बन नहीं रही,
और सोचते हो- मैं तो हूँ ही एक नंबर का ‘चू, चू’,
फिर कट गया और उसे पा न सका,
दोस्त! मिथ्याभास है तुम्हारा,
Actually, कटता नहीं है|

बचपन में पढ़ा था,
नम्रता सज्जनों का भूषण है,
जो स्वयं के प्रतिकूल है,
वैसा आचरण दूसरों के साथ उचित नहीं,
ऐसी प्रवृत्ति लिए, तुम साफ़ दिल से,
करते हो अपना व्यापर,
परन्तु, संकुचित मानसिकता लिए लोग,
जब स्तरहीन व्यहवार करते हैं,
तुम्हें लगता है, ये तो मेरी ही कमज़ोरी है,
चालक न होने के कारण कट गया,
दोस्त! लगता है तुमको ऐसा,
Long term में कटता नहीं है|

इसी तरह जीवन में,
सम्यक संकल्प, निश्छल भाव व उद्दाम उत्साह लिए,
अपनी जांनिसार हसरतों की हासिल को,
तुम पुरजोर कोशिश करते हो,
कदम दर कदम, चट्टानों और चोटों से,
घायल और थके, तुम सोचते हो,
वो और होंगे जिन्हें मिलती होगी मंजिल,
सब कुछ करने के बाद भी, मैं खाली हाथ ही रहा,
और अंततः  कट गया,
फिर बोलूँगा दोस्त! तुम सोचते हो ऐसा,
कटता नहीं है really |

सुनो! अच्छा ये बताओ,
तुम्हें क्या लगता है?
नीयत गलत है तुम्हारी?
या फिर कोशिश में कमी या तरीका गलत है?
सब जान-समझ कर किये सच्चे प्रयास के बाद भी,
यूँ हताश क्यूँ हो जाते हो?
क्या तुमने सच को सच नहीं कहा?
झूठ को ‘झूठ’ न कहते हुए भी, क्या पहचाना नहीं?
या जहाँ भी गरिमा, सरलता व सौंदर्य दिखा, मन ही मन उसकी पूजा न की?

तो क्या हुआ यदि दिखाने को तुम्हें,
वाह्य, भव्य उपलब्धियां नहीं,
क्या हुआ जो वह नहीं मिली?
जंग में हार जीत तो होती ही है,
और कोई भी Chance, Last Chance नहीं होता,
संभालो खुद को,
आंसू आते हैं तो रोको नहीं,
जाओ और छिपकर,
दीवार को माँ समझ, जी चाहे रो लो|

उठना फिर उस सोने के बाद,
पुराना सब कुछ भुला के,
उसी संकल्प और तपस्या के साथ,
एक बार फिर अपना सब कुछ देने को,
इस बार तुम्हारी आखों में आंसू नहीं,
चेहरे पे मुस्कान होगी,
और तुम समझ जाओगे कि,
जब तक खुद न कटवाओ,
कटता नहीं है|


Friday, January 30, 2015

कैसे कहूं क्या करार है?

कैसे कहूं क्या करार है?
न जाने क्यूँ तेरा इंतज़ार है,
डर लगता है तुझे खो न दूं,
मेरी बेबसी है ये,
या तेरा प्यार है?

समझना चाहा चाहत को,
मोहब्बत चीज़ है क्या?
होती है क्यूँ?
बिखरा बिखरा सा लगता है सब,
शोर भरा सन्नाटा और,
खोया खोया सा मैं,
ये है आशिकी का जूनून,
या तेरा प्यार है?

दिल में एक खलिश सी,
ये ख़ामोशी, ये दूरी,
तुझ बिन चैन नहीं,
मिलना गर दुश्वार है,
तेरी शोखी, तेरी हंसी, तेरी शरारतें,
तू है मेरी दुनिया, तू मुझमें बसी,
तू है तो वजूद मेरा,
ये मदहोशी है मेरी,
या तेरा प्यार है?

न जाने क्यूँ तेरा इंतज़ार है,
मेरी बेबसी है ये,
या तेरा प्यार है?
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