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Thursday, December 9, 2021

उद्यमी तुम्हें नमन!

 उद्यमी तुम, वीर तुम,

साहसी तुम, धीर तुम,

विशाल ध्येय, महत कार्य,

चल पड़े, निकल पड़े |

 

निर्माण नव, उत्साह नव,

संकल्प नव, अभिव्यक्ति नव,

कठिनाइयों से भय नहीं,

मंजिल तथापि तय नहीं|

 

चुनौतियाँ प्रचंड हैं,

संसाधन भी अल्प हैं,

शनैः, शनैः, कदम, कदम किन्तु,

ऊंचाईयां छू जायेंगे|

 

न साथ कोई मित्र है,

एकान्त सी यह यात्रा,

सृजन को आतुर हो जो,

बस है उसी की पात्रता|

 

असफल हुए तो क्या हुआ?

इस अपमान में भी मान है,

दृष्टि हो दूरगामी यदि,

पराजय भी एक पड़ाव है|

 

थकना नहीं, मुड़ना नहीं,

दृढ़ता तुम्हारी शस्त्र है,

हतोत्साहित न होना कभी,

आत्म-विश्वास कवच-वस्त्र है|

 

रचयिता तुम भारत-भविष्य के,

विकास-रथ के सारथी,

नव-युग की आपदाओं से रक्षक,

प्रगति-यज्ञ की आशीष-आरती|

 

धन्य है जननी तुम्हारी,

तात और वसुंधरा,

धन्य हैं गुरुजन तुम्हारे,

धन्य बन्धु और सखा|

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