Search

Thursday, December 9, 2021

उद्यमी तुम्हें नमन!

 उद्यमी तुम, वीर तुम,

साहसी तुम, धीर तुम,

विशाल ध्येय, महत कार्य,

चल पड़े, निकल पड़े |

 

निर्माण नव, उत्साह नव,

संकल्प नव, अभिव्यक्ति नव,

कठिनाइयों से भय नहीं,

मंजिल तथापि तय नहीं|

 

चुनौतियाँ प्रचंड हैं,

संसाधन भी अल्प हैं,

शनैः, शनैः, कदम, कदम किन्तु,

ऊंचाईयां छू जायेंगे|

 

न साथ कोई मित्र है,

एकान्त सी यह यात्रा,

सृजन को आतुर हो जो,

बस है उसी की पात्रता|

 

असफल हुए तो क्या हुआ?

इस अपमान में भी मान है,

दृष्टि हो दूरगामी यदि,

पराजय भी एक पड़ाव है|

 

थकना नहीं, मुड़ना नहीं,

दृढ़ता तुम्हारी शस्त्र है,

हतोत्साहित न होना कभी,

आत्म-विश्वास कवच-वस्त्र है|

 

रचयिता तुम भारत-भविष्य के,

विकास-रथ के सारथी,

नव-युग की आपदाओं से रक्षक,

प्रगति-यज्ञ की आशीष-आरती|

 

धन्य है जननी तुम्हारी,

तात और वसुंधरा,

धन्य हैं गुरुजन तुम्हारे,

धन्य बन्धु और सखा|

Monday, November 16, 2020

अंतर्रात्मा की आवाज़

ओ अमूर्त कल्पना के सजीव चित्र,

कितनी तीक्ष्ण है तुम्हारी अन्स्पर्श छुअन,

देह, मानस और आत्मा को चीरती हुई,

मुझमें द्रवित और खुद में मुझे डुबोती हुई,

जैसे मन-मीन का आनंद-सरिता में उन्मुक्त प्लवन|

 

कुछ भी पा जाऊं, अधूरा है मेरा प्राप्त,

यश, धन और ये सामाजिक सरोकार,

क्यूँ नहीं देते मुझे जीवित होने का भान?

कितना भी जी लूं, नहीं भर पाती वो श्वास,

तुम्हारे सानिध्य में मैं जो भर पाती उड़ान|

 

जीवन यदि द्वंद्व-मरुस्थल है, फिर यह प्रेम-मरीचिका क्यूँ?

जन्मों का विरह और फिर मिलन, मिलन यह अपूर्ण क्यूँ?

चलते जाते हैं पड़ाव दर पड़ाव, गंतव्य है भी कोई?

अनेकों ऐसे प्रश्न मेरे, उठते बार बार,

कब तक मैं करूँ उपेक्षित अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़|

 

कहाँ मिलेगा वो ध्येय, तदार्थ समर्पित कर सकूं स्वयं को?

कहाँ मिलेगा वो स्तोत्र, मुक्ति-रस पी सकूं जिससे छक कर?

कहाँ मिलेगी वो आग, तप कर जिसमें निखर जाऊं?

कहाँ मिलेगा वो कान्हा, जिसकी राधिका बन जाऊं?

ऐसे प्रश्न मेरे अनुत्तरित, उठते बार बार,

कब तक मैं करूँ उपेक्षित अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़|

Saturday, January 25, 2020

प्रतिश्रुति


ओओ-ओओ, आयेंन-आयेंन, क्वाँआँ-क्वाँआँ,
देखो! मैं अवतरित हो गया,
माँ के गर्भ में बाहर आने की आकुलता थी,
और बाहर का यह संसार,
मेरे लिए एक वृहत रहस्य|

बस सोता हूँ और रोता हूँ,
रोता भी कहाँ हूँ?
यह तो मेरा संवाद है,
उस जगत से,
जहाँ से मैं आया हूँ|

तुम मुझमें अपना बचपन देखते हो,
और मैं तुममे अपना भविष्य,
बस प्रेम की भाषा समझता हूँ,
रूप मेरे लिए अपरिचित है,
भावों की ध्वनि सुनता हूँ मैं,

ये पौधे, चिड़िया, तितली और फूल,
सब मेरे दोस्त हैं,
निर्दोषता के पालने पर,
हम साथ-साथ झूलते, खेलते और हँसते हैं,
तुम भी आओ और खेलो मेरे साथ|

मम्मी मुझे अंक में भर दूध पिलाती हैं,
मोहक कपड़े पहना मुझे आकर्षक बनातीं हैं,
पापा मुझे देख मुस्कुराते और रोचक लोरियां सुनाते,
साथ मिलकर हम ओमकार करते,
ॐ – जिसमे समस्त ब्रम्हांड का कम्पन निहित है|

शनैः शनैः मैं परिचित होऊंगा,
इस सृष्टि और इसकी विविधिताओं से,
मानव-जीवन और इसकी जटिलताओं से,
जो अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, वर्ण-वर्ग के द्वंद्वो से परे,
सबके लिए समान है|

मुझसे सभी प्यार करते,
क्यूंकि मैं मानव का भविष्य हूँ,
उसकी सभ्यता व संस्कृति का वाहक,
इसीलिए इतिहास समझते हुए मुझे वो गलतियाँ नहीं करनी,
जिनके दुष्परिणाम मानव जाति भुगत चुकी है|

प्रगति क्या है? प्रकृति से हमारा सहचर का नाता कैसे हो?
दुःख क्यूँ है? इसका समूल निवारण कैसे हो?
क्या अविभाजित मानव संभव है?
देश प्रेम और कट्टरता, संकीर्णता व व्यापकता का अंतर क्या है?
इन सब प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होगा|

मैं ही मानवता का पुण्य हूँ, मैं ही उसमें छिपा दानव,
इस अन्तर्निहित विरोधाभास को आत्मसात करते हुए,
सही राह पर संभल कर आगे बढ़ना होगा,
भय, ईर्ष्या, मोह, अहंकार, क्रोधादि मनोवेगों से निर्मित,
इस भाव-संसार को तरना होगा|

जिम्मेदारियां बड़ी हैं, किन्तु असाध्य नहीं,
मंथन कर मुझे संधान करना होगा उस ‘शाश्वत’ सत्य का,
जिसके आनंद-गान से मैं सबके जीवन को संगीतमय कर सकूं,
यही मेरे आने वाले जीवन का संकल्प है,
यही है मेरे अस्तित्व की प्रतिश्रुति |


Tuesday, May 7, 2019

अतिथि


अतिथि! सुना है तुम आ रहे हो,
स्वागत करता हूँ,
सच कहूं! कुछ संशय में हूँ,
क्या तुम्हें निमंत्रण देना उचित था?
क्या अभी भी रोक दूं तुम्हें आने से?

विविधताओं, अनिश्चितताओं से भरा यह संसार,
गूढ़ रहस्यों और जटिलताओं से भरा यह जीवन,
इस आमंत्रण से तुम्हारी मुश्किलें तो नहीं बढ़ा दी मैंने?
विचारों के इस गुम्फन से थकित और व्यथित होता हूँ,
फिर भी! चल पड़े हो तो आओ, स्वागत है |

तुम्हारी क्या और कैसे मदद कर पाऊंगा?
भौतिक सुख की सारी सुविधाएं उप्लब्ध होंगी यहाँ,
फिर भी इस साधन मात्र से तुम प्रसन्न रहोगे ?
संदेह है मुझे,
चलो! सिधार्थ की कहानी सुनाता हूँ|

अनेकोनेक भोग-विलासों में निमज्जित रहने पर भी,
सिधार्थ प्यासा था - पीड़ित तथा व्याकुल,
उसकी विकल वेदना में सत्य की अभिलाषा थी,
अनुसंधित्सु! तडपा और भटका वह,
गहन आत्मान्वेषण के प्राप्य ने सिधार्थ को बुद्ध बना दिया|

अतिथि! कितना कुछ कहना चाहता हूँ,
लेकिन मैं स्वयं ही यहाँ असहज अनुभव करता हूँ,
मेरे यहाँ होने का उद्देश्य क्या है?
कब आएगा वो पल ?
जब मैं निश्चिन्त इस कोलाहल से विदा ले पाउँगा,

क्या तुम भी मेरी तरह इसी भांति विचलित होगे?
हाँ मैंने बुलाया था तुम्हें,
तुमसे मिलने की उत्कंठा थी,
तथा अस्तित्व की चुनौतियों से तुम्हें परिचित कराने की ग्लानि भी,
स्नेह स्वीकार करना और अपराध क्षमा|

देखो! ये पेड़, ये फूल, ये चहचहाते पक्षी, ये फुदकती गिलहरी,
ये हवा, यह बहता पानी,
सब आत्मनिर्भर, स्व-प्रेरित, स्वतः गतिमान हैं,
संचालित हैं,
उस सर्वत्र गुंजायमान मौन के कम्पनों से|

हे अतिथि,
तुम भी स्वावलंबी बनना,
परिश्रमी, धैर्यशाली, सुख-दुःख में समान,
विनम्र, विवेकी, और संवेदनशील,
करुणामय, सबको साथ लेकर चलना|

आनंद बटोरने में नहीं,
अर्जित कर उसे बांटने में है,
इस अमृत-वाणी को,
प्राणों में बसा, जीवन का आधार बना,
अपना पथ प्रशस्त करना|

आओ अतिथि मित्र!
तुम्हारा अभिनन्दन!

Thursday, January 31, 2019

तुम ही तो हो


सुबह की खिलखिलाती किरणों में,
जब देखी मैंने परछाई फूल की,
और फिर देखा,
स्वाभिमान की आभा से मंडित,
कुसुमित उस फूल को,
जो था अपनी गरिमा में शोभायमान,
आहिस्ता से, दिल के कोने से कहीं,
ये आवाज़ आई,
यह गर्वित, पुष्पित शोभा तुम ही तो हो|

चलते-चलते,
जब थक गया मैं,
स्वेद-स्नात, हैरान और परेशां,
सोचते हुए ये,
कैसा ये सफ़र, मंजिल है कहाँ?
उस समय जो चली शीतल मंद बयार,
दिल के कोने से
, आहिस्ता से,
वही आवाज़ आई,
ये ठंडा एहसास तुम ही तो हो|

ज़िन्दगी की जंग में,
लड़ता रहा, गिरता रहा,
गिरते डरते, उठते, सीखते हुए,
अनवरत प्रयासों से,
जब पार की जीत की वो रेखा,
मेरे मन ने मुझसे, आहिस्ता से,
फिर कहा,
तमाम हासिलों की धडकनों में,
तुम ही तो हो|

सुकून की तलाश में भागता रहा पाने को,
दौलत और शोहरत,
बहकता रहा,
न जाने किन गलियों में,
अनेकों उपलब्धियों-प्रशस्तियों के बावजूद,
जब वो मुखड़ा देखा तुम्हारा,
अंतर्मन से, आहिस्ता से,
फिर वो ही आवाज़ आई,
सुकून तुम ही तो हो|
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.