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Friday, December 8, 2017

मिलन

मिलना मुद्दतों बाद, आपसे यूँ हुआ,
बिछड़ने का एहसास भी, हमें तब हुआ |

एक अनकही सी बात ही, नहीं कही गयी,
ये गुफ्तगू हमारा, नहीं मुकम्मल हुआ|

चिराग़ अरमानों के जलते रहे, मद्धम दिल में,
ये लौ तेरी यादों की, बुझी नहीं कभी|

आईने में देखा, तो फिर आप आये नज़र,
मेरा जो मुझमें था, जाने खो गया कहाँ?|

कोई पर्दा हमारे बीच, या तेरी नज़रों का था फरेब,
जो दीदार मुझे तुझमें, तुझे क्यूँ मुझमे हुआ नहीं |

सोचा था चलेंगे साथ, किसी बस्ती सुकून की,
सफ़र ये भी कैसा, शुरू हुआ कभी नहीं |

चले जायेंगे यूँ एक दिन, मजबूर तुझसे दूर,
पूछोगे तड़प कर, वो मेरा आशिक मिले कहाँ?|

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