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Saturday, December 5, 2009

I was walking casually

I was walking casually,
Without any hope;
And then I saw you walking too,
I was delighted-at the pleasantness of this surprise,
And to celebrate it-I smiled at you

You smiled at me too,
And I knew - Angles were there in heaven,
Your silence was the rapturous speech,
And your voice - Sweeter than sweet,
Your beautiful expressions - Charming to the hilt

It pulled me and I knew,
It was the bondage - A chain of affection and friendliness woven together,
It is hard for me to express the beauty of this tangle,
Its lurking melancholy and the yearning special,
It is a treasure- an unsung song
I wish to carry it in my heart all along

It gives me the pain of a thrill,
To think of you all the time,
And yet not be able to meet,
But I know!
Our meetings might be rare and short
Yet this friendship will grow by days,
To become deep and strong

Sunday, October 25, 2009

The Scenery

In the vast expanse of horizon,
where beauty resides with joy and light,
I could see you and there was peace.

There was me and standing in front of me the Sun,
and enveloping both of us-your luscious charm,
your memory was the pain and my tears the music,
a delight of solemnity, a lullaby for sleep.

Dear! it's all right and I have understood,
that love asks for boundless patience,
an indomitable spirit and
the punishment of lifelong separation,

The desire to be near you and to clasp you in arms,
like the flight of the birds,
would be dancing in the air,
making me yearn for you,
day after day, Forever!

Friday, July 10, 2009

क्या यही प्यार है?

"देखा तो मेरा साया भी मुझसे जुदा मिला",
ऐ तन्वि! पार्थक्य का यही भाव व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व से विलग कर देता है.

"सोचा तो हर किसी में मेरा सिलसिला मिला",
संबंधन की यही प्रक्रिया समष्टि की विशिष्ट चेतना की जननी है.

एक दूसरे से कितने विभिन्न होते हुए भी हम सभी में अग-जग प्रतिध्वनित, मानवता की अदृश्य वीणा से झंकृत नाद अनुगूंजित होता है. इस व्यापक सम्बन्ध को क्या नाम दें? किसी शिशु का निर्दोष स्मित यदि किसी को आह्लादित करता है, तो यह क्या है? किसी विषन्न (grieved) मानव को देखकर यदि व्यक्ति के ह्रदय में करुणा जनित होती है तो यह क्या है?

ये सारे व्यापर उसी व्यापक सम्बन्ध के प्रदर्शन हैं. मेरे अनुसार प्यार कोई भाव नहीं, प्यार कोई कला नहीं, प्यार कोई आदर्श भी नहीं, वरन प्यार इन सब कारकों का कारण है. इंसान की सारी कोशिशें प्यार से शुरू होकर प्यार पर समाप्त हो जाती हैं. इसलिए प्यार को रिश्तों के दायरे में कैद नहीं किया जा सकता. यदि मुझमे मानवीय संबंधो को समझ सकने की सकत है, तो मैं unhesitatingly कहता हूँ कि मानव से मानव के इसी व्यापक सम्बन्ध को प्यार कहते हैं.

किसी के ह्रदय में निमज्जित भावों का प्रभंजन यदि उसे सृष्टि में विवृत सौंदर्य का दर्शन सादगी की एक प्रतिमूर्ति में करा दे तो इसे क्या कहेंगे? शायद लोग इसे एक distracted person का cheap sentimentalism कहें, पर मेरी विचारणा तो यही कहती है कि सौंदर्य की मृदुलता सादगी की स्निग्धता में ही दृष्टव्य है.

हाँ, यदि कोई चारुस्मित किसी के messages पर एक उपेक्षा भरी दृष्टि डालकर उसे ignore कर दे तो इसे सौंदर्य की क्रूरता नहीं कहें तो क्या कहें? यदि अपनी केशों की लटों में से झाँककर कोई किसी का चुपके से दीदार कर ले तो इसे उस रमणी का चातुर्य नहीं कहें तो क्या कहें? झुकी हुई तिरछी नज़रों से यदि कोई किसी को प्रताडित करे तो उस संवेदंविहिना को क्या सजा दें?

इसकी सजा तो यही हो सकती है कि वह चारुस्मित सौंदर्य की तृषा से आकुल, प्रेम के याचक की प्रेरणा बन जाये.

Monday, July 6, 2009

सौंदर्य का दर्शन

भावनाओं के वर्तुलाकार वातचक्र में सौंदर्य को सीमित करना या सौंदर्य के अथाह सागर में भावनाओं की थाह लेना? सौंदर्य की पवित्रता में स्वयं का शुद्धिकरण या सौदर्य के संकीर्ण दर्शन का पवित्रता की स्गिन्धता से प्रक्षालन? यदि सौंदर्य व्यापक, सर्वव्याप्त है, आनंद का जनक है, तब इसका उदबोध सृष्टि के विशिष्ट पदार्थों में ही क्यूँ? चाहें वे विशिष्ट पदार्थ अपनी -अपनी विशिष्टता में कितनी ही समानता रखते हों और जिन मानदंडों पर उनकी विशिष्टता स्थापित हो, वे मानदंड कितने ही objective क्यों न हों?

यदि सौंदर्य संकेंद्रित नहीं तो क्यूँ इसकी तीव्रता स्थानीय व सामयिक है? क्या मोह का उदभिद सौंदर्य के एकपक्षीय दृष्टिकोण से संभूत, सीमित दृष्टि से पल्लवित होता है? तब सौंदर्य को समग्र रूप में उसकी उद्धत धारा के हिल्लोलों से उच्छलित व उनके मूल में सतत प्रवाहमान, अनंत गति का अनुशीलन करने वाली असीम आनंद की वाहक अवलोकमान दृष्टि कैसे प्रदान की जाए?

तुम सौंदर्य की सर्वमान्य, सुप्रतिष्ठित प्रतिमूर्ति नहीं, तदैव तुममें निहित आनंद कोष की रूप-राशि का कौन सा भाव मुझे इस अवश आकर्षण में पाशबद्ध किये है?

ऐ-हुस्न-ए-बेपरवाह! क्या तुम्हें स्वयं अपनी सौंदर्य की विशिष्टता का बोध है?

Monday, June 29, 2009

चिंतन

संगीत-एक अनन्य भावबोध!
यथार्थ की परिकल्पना या अंतर्मन की अनपहचानी वेदना,
रचना - शब्दों का क्रमचय -संचय, भावों की उधेड़बुन!
शब्दों का भाव पर अधिपत्य या,
भावों का शब्दों की भूमि पर उन्मुक्त प्रवाह,
स्मृति-एक पुरातन भावमय बिम्ब!
अतीत की पुनर्रचना या
वर्तमान की पीठिका पर भूत का प्रत्यावलोकन?

टूटना

टूटे हैं ,
लेकिन बने भी हैं हम,
भले ही वो बनना,
टूटकर जुड़ने की पुनर्प्रक्रिया क्यों न हो

संवेदनाएं

पीडा की बोझिलता या
अनुभूतियों की उलझी गाँठ
भावनाओं की व्यंजकता या
गलित होता स्व?
संवेदनाओं की दुरुह्ताओं का
आशय कोई कैसे समझे?
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