Search

Monday, July 25, 2011

उलझी लटें

जुस्तजू जिसकी थी उसको तो पाएंगे ही हम,
इस बहाने अगर दुनिया भी दिख जाये तो क्या है?

पूछते हो मुझसे मेरे आंसुओं का सबब,
गर बयां कर पाते तो ये हाल ही क्यूँ होता|

जब भी रोये हैं, ग़म में ही रोये हैं हम,
खुशियों में रोने की तमन्ना है इस बार|

सोचेंगे नहीं, लगायेंगे गोता,
तेरी चाहत के समंदर में,
या तो डूब जायेंगे, या साहिल पे तुझे पाएंगे|

गर उन्हें भी तड़पन हो मेरा दीदार करने की,
इस हिज्र के मौसम की बरसात अच्छी होगी|

नज़ारे कितने देखे इस कायनात में,
तेरी दीवानगी के इस आलम को ऐ दोस्त सलाम करते हैं|

Sunday, July 24, 2011

सज़्दा

लगती है आग दिल में,
उठता है ख्याल मन में,
बन जा खुदा तू मेरी,
सज़्दा करूँ हमेशा!
Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.