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Tuesday, December 26, 2017

जीवन

जीवन यदि प्राची से उदित दिवाकर की आभायुक्त रश्मियों की भांति लालिमायुक्त व उदभासित है, वहीँ तुषार के धुंधलके में छिपा कोई रहस्यात्मक आवरण है|

जीवन की विभिन्न अनुभूतियाँ मनुष्य के अन्तरतर में विभिन्न भावों का प्रवाह उसी प्रकार कराती हैं यथा विभिन्न रंग विन्यासों में अंकित कोई चित्र भिन्न कोणों से भिन्न भिन्न बिम्बों को धारण करता है|

अर्ध्य

मुझे ईर्ष्या है सागर की लहरों से|

शायद मैं लहरों के रूप में सीमाओं का अतिक्रमण कर सूर्य की गर्मी से उपहत तेरे पदचापों को शीतलता प्रदान कर पता (भले ही वाष्प बन कर स्व-अस्तित्व को तिरोहित करता)|

मेरा प्रेम सत्य है, किन्तु क्या कहूं? सत्य की सत्यता का भी तो कोई प्रमाण नहीं है| एक अनुभूति, एक अन्तः-प्रेरणा मात्र है|

टीलों पर चमकते रेत के कणों को सूर्य की लालिमा जब स्पर्श करती है- कल्पना करता हूँ की धरती से आकाश तक के सारे चमत्कारों को तेरे सौंदर्य की आभा से चमत्कृत करता|

पता नहीं यह तू ही है या मेरे मन में प्रतिबिम्बित प्रेम की प्रतिमा|

हे ईश्वर मुझे मुक्ति नहीं चाहिए, न ही जन्म अथवा मृत्यु से लगवा या भय| कोई कामना भी नहीं|

कामना है तो मात्र यह कि मेरी यह वेदना मेरे प्रिय की आँखों में अश्रु के दो बूँद पैदा कर पाती|

और हे प्रिय, तुझसे भी मेरी यही अभ्यर्थना है कि अश्रु के इन बूंदों को अपने पलकों के कोर में रोके रहना, तथा मेरे आने पर इन्हें धीरे से मेरी अंजुली में लुढ़क जाने देना|

जिससे हे प्रभु! मैं अपनी साधनाओं की इस अमूल्य निधि से तुझे अर्ध्य दे सकूं| 

पहचान

आत्म-प्रवंचनाओं के निविड़ में,
नैराश्य की छाँव में बैठा,
मैं सोचता था,
हँसते क्यूँ हैं लोग-
क्या दूसरों के उपहास हेतु?
या ऐसे ही सुख की खोज में-
स्यात हँसने से सुख मिल जाये,
नहीं समझ पाया था महत्व उस हंसी का,
जो होती है विमुक्त,
दुःख-सुख की सीमाओं से परे,
अनंत उल्लास की परिणति|

अकस्मात् मिलने पर,
जब भी देखता,
तेरा वह मधुर, मोहक, आकर्षक स्मित,
नहीं समझ पता कि,
यह मेरी श्लाघा है या तिरस्कार|

देखता जब भी खुले आकाश के नीचे,
स्वयं में ही मग्न तुझे व,
तेरा मसृण, प्रशांत मुखमंडल,
एक हूक सी उठती सीने में,
नहीं ज्ञात कर पाता उद्गम,
इस दर्द के प्रवाह का,
एक ऐसा दर्द,
जो अपना सा कुछ खोने पर होता है|

इस प्रकार अज्ञात दुखों से पीड़ित,
स्वनिर्मित मरीचिकाओं से था भ्रमित,

किन्तु! उस दिन तुमने,
जब नाम ले मुझे पुकारा,
पता नहीं क्या था उस संबोधन में,
सिंचन - जो एक प्रेम पिपासु का,
सौंदर्य-सरिता के प्रवाह द्वारा था,
या फिर घना प्रेम,
जो मेरे प्रेम की भांति,
छिपा था तेरे अंतर्मन में,
अन्ततः तडपन की अग्नि से हो गलित,
प्रवाहित हो गया|

जो भी हो तेरा संबोधन,
सहानुभूति, प्रेम या निरा संबोधन मात्र,
मैं खुश था, बहुत खुश,
क्यूंकि मुझे मेरी
'पहचान' मिल गयी थी|

शब्दार्थ : प्रवंचना - Misconception, निविड़ - घोंसला/घर, नैराश्य - निराशा, स्यात - शायद, अकस्मात् - अचानक, स्मित - मुस्कान, श्लाघा - प्रशंसा , मरीचिका - Mirage


Monday, December 25, 2017

चलते रहते जायेंगे

कवितायेँ अभी बाकी हैं,
समय-संदूक में कैद हैं खुशियाँ,
प्रेम राग है मौन कहीं,
कर्तृत्व अभी अधूरा है,

अप्रतिहत, अवसाद-हीन हम,
प्रमुदित मन, उत्साहपूर्ण हम,
महत-लक्ष्य के कठिन मार्ग पर,
चलते रहते जायेंगे|

नैनों में सौंदर्य-ज्योति रख,
प्राणों में माधुर्य भाव भर,
उपेक्षा के अंधियारे को,
हम उजला करता जायेंगे|

जय-पराजय भेद परे हम,
मान-अपमान विचार परे हम,
जितनी होंगी सांसें,
पूरा खेल खेलकर जायेंगे|

हम चलते रहते जायेंगे|

शब्दार्थ: कर्तृत्व - Work to be done, प्रमुदित - Happy, महत -Big, अप्रतिहत - Unhurt, अवसाद हीन - Free from dejection, माधुर्य - Sweetness

Friday, December 8, 2017

मिलन

मिलना मुद्दतों बाद, आपसे यूँ हुआ,
बिछड़ने का एहसास भी, हमें तब हुआ |

एक अनकही सी बात ही, नहीं कही गयी,
ये गुफ्तगू हमारा, नहीं मुकम्मल हुआ|

चिराग़ अरमानों के जलते रहे, मद्धम दिल में,
ये लौ तेरी यादों की, बुझी नहीं कभी|

आईने में देखा, तो फिर आप आये नज़र,
मेरा जो मुझमें था, जाने खो गया कहाँ?|

कोई पर्दा हमारे बीच, या तेरी नज़रों का था फरेब,
जो दीदार मुझे तुझमें, तुझे क्यूँ मुझमे हुआ नहीं |

सोचा था चलेंगे साथ, किसी बस्ती सुकून की,
सफ़र ये भी कैसा, शुरू हुआ कभी नहीं |

चले जायेंगे यूँ एक दिन, मजबूर तुझसे दूर,
पूछोगे तड़प कर, वो मेरा आशिक मिले कहाँ?|

Sunday, June 18, 2017

खुशबू

तेरी यादों का झोंका आया,
खुशबू है तेरी साथ लाया,
अरमां हैं उठे फिर दिल में,  
तूने जादू ये कैसा कर डाला?
बयाँ मैं कैसे करूँ तुझसे, अपना हाल-ए-दिल,
हर एक चेहरे में दीखता तेरा ही चेहरा है|

अधूरा मिलना था अपना, अधूरी बातें थीं,
कशमकश से भरी, वो मुलाकातें थीं,
जो सब कुछ कहना था, अब कैसे कहूं?
दिल की धड़कन को, तेरी मैं कैसे सुनूं?
ऐ मुक़द्दर! बता आखिर तेरी रज़ा क्या है?
मोहब्बत करने की ऐसी भी ये सजा क्यूँ है?

भरोसा है वक़्त पर, फिर मिलन होगा,
गुफ्तगू नज़रों से होगी, किस्सा-ए-दिल होगा,
एक हो जायेंगे ऐसे कि फिर न बिछड़ेंगे,
इश्क के इस सफ़र का ये हसीं इंतिहा होगा,
ऐ रब! तुझे है सब खबर, रहम कर, तू करम कर,
सहर कर शब्-ए-हिज़्रा की, अब और न बेसब्र कर|

Thursday, May 25, 2017

सहारा

लडखडाओ तुम कभी, जब ठोकरों की चोट से,
और करीब कोई सहारा न हो,
संभल जाना ये जानके, मैं साथ हूँ तुम्हारे|

(Ch:
  साये की तरह हर पल, साथ हूँ तुम्हारे,
   सांसों में, दिल की धड़कन में, साथ हूँ तुम्हारे)

टूटने लगे जब सपने, हकीकत की ज़मीं पर,
और नए सपने देखने से, लगता हो डर,
बिखर न जाना तुम, सपना हो तुम मेरे|
(Ch:
  आँखों में छिपे सपने की तरह, साथ हूँ तुम्हारे,
  ऋतु ग़म की हो या बहार की,साथ हूँ तुम्हारे)

औरों को देख आबाद, घर अपना लगे बर्बाद,
और हताश कोशिशों से, जीना लगता हो बेमानी,
समझ लेना सब कुछ है, जो साथ हूँ मैं तुम्हारे|
(Ch:
  हर चाह में, हर आह में, साथ हूँ तुम्हारे,
  हर जीत में, हर हार में, साथ हूँ तुम्हारे)

हौसलों की भर उड़ान, छू लो मंज़िल-दर-मंज़िल,
और हासिल पे तुम्हारे, कभी लगे जो लगाम,
राह का काँटा समझ, चलते जाना-रुकना नहीं,
मेरी दुआएं हैं, सदा साथ तुम्हारे|
(Ch:
  हर सज्दे में, हर मन्नत में, मौज़ूद हो तुम,
  हर जंग में, हर जश्न में,साथ हूँ तुम्हारे)

कुछ नया करने की चाह हो, रास्ते अनजान हों,
और साथ न हो कोई,
तन्हा ही चल पड़ना, साथ हूँ हर सफ़र तुम्हारे|
(Ch:
  हर राह में, हर मोड़ पर-साथ हूँ तुम्हारे,
  हर सोच में, हर खोज में, साथ हूँ तुम्हारे)

संभल जाना ये जानके, मैं साथ हूँ तुम्हारे|
समझ लेना सब कुछ है, जो साथ हूँ मैं तुम्हारे|
बिखर न जाना तुम, सपना हो तुम मेरे|

Monday, May 8, 2017

'इश्क़-ए-ज़ुनून'

रह रह तड़पाता है, नज़र नहीं आता है,
बेवजह होता है, चैन फिर खोता है,
हसरतें तूफानी, ज़ुस्तज़ु अनजानी,
सीने में दर्द, आँखों में इश्क़,
जुनून--इश्क़,
क़ातिल--इश्क़,
गुनाह--इश्क़,
नसीहत इश्क़

ख्वाब जो देखे थे, कभी क्या सच होंगे?
वक़्त जो ठहरा है, कभी क्या पिघलेगा?
क़रार पक्का है, दिल ये सच्चा है,
रूह की आवाज़ उन तलक पहुंचेगी कैसे?
कोशिश--इश्क़,
गुज़ारिश इश्क़,
सितमगर इश्क़,
मरहम भी इश्क़

आग ये ऐसी है, अंदर सुलगती है,
हवा ये कैसी है, खुलके बहती है,
वो कैसा मंज़र था, चाहत में लुट बैठे?
मज़बूर दिल है अब, ये हम क्या कर बैठे?
बियाबान इश्क़,
जहन्नुम इश्क़,
तरन्नुम इश्क़,
ज़न्नत--इश्क़

कशमकश हर पल है, अंजाम क्या होगा?
आशिकी इब्तिदा है, इंतिहा क्या होगा?
माशूक़ रूठा है, इश्क़ फिर झूठा है,
छिपा जो प्यार दिलों में, उसे जगाये कौन?
राज़ है इश्क़,
मकाँ है इश्क़,
बहस है इश्क़,
फैसला इश्क़


Thursday, April 27, 2017

कौन हमें बतलाएगा

कौन है चांपू, कौन है तेलू?
कैसे समझ में आएगा,
क्या है हकीक़त, क्या अफ़साना,
कौन हमें बतलाएगा|

इश्क-ए-जूनून की रंज से परेशां,
हमने तो इकरार किया,
उनके दिल की धड़कन को तो,
कोई वाईज़ ही सुन पायेगा|

फ़लसफ़े कितने पढ़ डाले,
मौज-ओ-सुकून की तलाश में,
खुद को पढ़ लो यार यदि,
राज़ जीवन का खुल जायेगा|

तिश्नगी मुझे भी है यारों,
दौलत की और शोहरत की,
दिल में चैन गर फिर भी रहा न,
किस काम मेरे वो आएगा|

जीवन की लम्बी राह में,
पग पग पर कांटे बिखरे हैं,
तुम ही बताओ ऐ मौला,
एक इंसा अकेला कैसे लड़ पायेगा?|

अरदास मेरी तुमसे ऐ खुदा,
कबूल मेरी ये दुआ करो,
देना न किसी को दर्द-ए-मोहब्बत,
दीवाना बन मर जायेगा|

शब्दार्थ:  चांपू = Slang for ‘someone smart’, तेलू = Slang for ‘someone lackadaisical’, अफ़साना = Story, इश्क-ए-जूनून = Crazy love, रंज = Pain, इकरार = Agree/Accept, वाईज़ = Preacher/Wise person, फलसफा = Philosophy, मौज-ओ-सुकून = Peace & joy, तिश्नगी = Thirst

Saturday, April 8, 2017

A Short Treatise on Tamma tamma logey tamma (तम्मा तम्मा लोगे तम्मा)

If the above title sounds as some kind of ad jingle and ‘tamma(तम्मा) appears to be a FMCG product - you are not alone. With such catchy tune, it is difficult to resist its appeal.

So what is tamma? Is it a promise of achhe din which shall come some(?) day? Or is it a new gadget offered in bumper discount  on those e-commerce sites ? Or is it some kind of chumma1 which was supposed to be given on the day of previous Jummah2?

Unless we track down the creators of this great tamma tamma , it is difficult to say for sure- what is tamma? However, that shouldn’t stop us from hazarding a guess. We don’t have paucity of time really and this shall be much needed break from that WhatsApp chat group.

Prima facie tamma looks like a hard nut to crack. It needs nothing less than dialectical analysis (whatever that is) and being no Marxist scholar, I leave it to you and your leftist friends to figure that out. That takes us to economic study of tamma. Could tamma be harbinger of the next stock rally? Or it is a new name of demonizing errrrr demonetizing effort by the Govt? Tamma might be a new concept in game theory where it is eventually a zero sum game i.e. it is either your tamma or mine; both of us cann’t have our tammas at the same time.

What fun is tamma if we cann’t have it together? We, therefore, need to understand its plausible socio-political ramifications. Is it that elusive tool which could carry out social engineering and cut at the hidden roots of social inequality? We can be sure that tamma wouldn’t see light of the day and would be crushed to death by our political class. After all, what business they would’ve if tamma business gets established? Would it be revolutionary and unbelieving if tamma is the secret symbol of a political party in making which would have internal democracy before it plans to govern the democratic republic of India?

Delving deeper, is tamma logey a call to spiritual awakening? Like that maverick sage Kabir exhorted – ‘ Santo Bhai, aai gyan ki aandhi re, bhram ki tanti sabai udani, maya rahe na bandhi re(संतो भाई! आई ज्ञान की आंधी रे, भ्रम की तांती सबै उड़ानी, माया रहै न बंधी रे)3 ; it could be possible that a realized one is singing tamma tamma logey to jolt us from the deep slumber we are immersed in:
Why do you fret –O anxious mind?
Don’t project now into future,
The future is created one moment at a time,
Just like tamma carries meanings sublime

As it seems, identifying tamma is not an easy task and the millennials don’t have enough attention span to focus any more on this tamma wamma. What we can do instead is to visualize the music of the following tamma rap. Let the most rocking of Baba sehgal, Honey or Badshah sing it. We shall meditate on the awesomeness of tamma- in whichever form it is;
Tamma tamma tamma, (तम्मा तम्मा तम्मा )
Ye kya hai gorakhdhandha, (ये क्या है गोरखधंधा)
Mere baap ka nahi, tere baap ka nahi,(मेरे बाप का नहीं, तेरे बाप का नहीं)
To kiska hai ye munda, (तो किसका है ये मुंडा)
Jahan se bhi aaya ho, jo bhi ise laya ho,(जहाँ से भी आया हो, जो भी इसे लाया हो)
Mauka sahi hai ye, dhokha nahi hai ye, (मौका सही है ये, धोखा नहीं है ये)
Offer ka ise maal samajh ke, (ऑफर का इसे माल समझ के)
1+1 ka plan samajh ke, (1+1 का प्लान समझ के)
Le lo tum bhi tamma, le lo tamma tamma! (ले लो तुम भी तम्मा, ले लो तम्मा तम्मा)

(Here is the link to the song
Put on your ear phone, raise the volume and get lost in it)

Note:
·   Chumma1Kiss
·   Jummah2 – Friday, when muslims offer prayer of Jummah
·   Santo bhai…3 – O fellow saints! There is gale of light and knowledge. Now, the cottage of ignorance has been dismantled gone away and temptation and attachment no longer trap me) 

Monday, February 13, 2017

बेसब्री

कह न सके हम, ये मेरी सांसों की सच्चाई है,
तू है तो रब है, वरना जीना रुसवाई है|

तुम्हें भूलते भी हैं, तो फिर याद करने को,
तेरी चाहत, मेरे वजूद की रानाई है|

एक मुद्दत हो गए, आपके दीदार को,
बहार मेरे कूचे में, इस बरस भी नहीं आई है|

ये जो फासले हैं, मेरे और तेरे दरमियाँ,
आगे बढ़ो तो वस्ल है, बैठे रहो तो खाई है|

ढूंढते हो आशियाँ, यूँ ही दर-ब-दर,
तुम्हारा मकां तो, मेरे दिल की गहराई है|

हिज्र के लम्बी रात की, आखिर कब होगी सहर?
आ भी जाओ अब, बेताब हसरतों ने ली अंगड़ाई है|

कुछ मेरी खता होगी, कुछ तेरी गलतियाँ,
ये है इश्क की मुश्किलें, नहीं किसी की बेवफाई है|



शब्दार्थ: रब - God, रुसवाई - Disgrace, रानाई - Beauty, दीदार - Sight, कूचा – Street, वस्ल - Union of lovers, आशियाँ - House, दर-ब-दर – Door to door, हिज्र – Separation, सहर – Morning, हसरतों - Desires, बेताब – Impatient, खता – Mistake  
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