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Saturday, August 30, 2014

तू मुझे बता रहा है?

तू मुझे बता रहा है?

सोचो बहुत,
करो अथक प्रयत्न - सुख के उन दो पलों के लिए,
वो एहसास हाथों से फिर भी फिसला जाता है,
यूँ ही कहीं कभी परन्तु,
शुचिता का एक सरल प्रगाढ़ स्पर्श,
क्षण मात्र में मन रंजन कर देता है,
सुकून के लिए अपनी इन बेहिसाब कोशिशों के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?

सौंदर्य की जिस प्रतिमा की खोज में हूँ मैं,
वह बाहर नहीं,
आकांक्षाओं के रोमांचक आवेग से प्रद्वेलित,
दिल की खल्वतों में ही कहीं छिपी है,
तमाम चेहरों में उसकी मुसलसर जुस्तजू के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?

जो दिखता है सामने से,
अक्सर वो होता नहीं है,
कितनी बार गलत समझा गया हूँ,
लेकिन,
सच की चादर ओढने से बेहतर है,
सच को देखना और जीना,
लोगों को इल्म नहीं,
फिर भी सतह से ही,
समंदर की गहराई का अंदाज़ लगा देते हैं,
क्ष्दम मूल्यांकन की तमाम चोटों और अपनी बेबाकी के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?

कितने अनुभव – कुछ रंज के, कुछ रंच के,
कितने दृश्य- कुछ प्रत्यक्ष, कुछ परोक्ष,
कितनी बातें – कुछ बोली, कुछ अनबोली,
कहता नहीं, लिखता हूँ,
ताकि सब कुछ कह सकूं,
मेरी ख़ामोशी पर मेरी कमज़ोरी समझी जाती है,
उन सारे अनकहे किस्सों को लिखने के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?

Friday, August 8, 2014

क्या रखा इन बातों में, ले लो अपने हाथों में

क्या रखा इन बातों में, ले लो अपने हाथों में|

दूर कहीं मरीचिका की भांति,
आशा की कोई किरण न आती,
संघर्षों के कंटक पथ पर,
पदचापें जब मंद हो जातीं,
गंतव्य को ध्यान में रख तब,
अप्रतिम उत्साह में भर,
दृढ संकल्पित बोलो तुम,
क्या रखा इन बातों में, ले लो अपने हाथों में|

अथक प्रयास करके तुम,
सम्पादित करते अपना काम,
मदद करते साथियों की,
आगे बढ़ता जिससे काम,
अवसर आता जब मूल्यांकन का,
पीछे रहता तुम्हारा नाम,
नीति नियमों की आड़ में,
भेदभाव के इस नग्न खेल से- अप्रतिहत,
तुम करते विश्वास,
प्रतिभा एवं लगन की अंततः,
होती नहीं कभी भी हार,
सतत सीख की स्वच्छ प्रवृत्ति से प्रेरित तब,
बोलो तुम,
क्या रखा इन बातों में, ले लो अपने हाथों में|


आकर्षण के पाशबद्ध,
भावों की गहराई से तुम,
जब प्रणय निवेदन करते हो,
प्रेयसी उसको खेल समझकर,
निर्दयता से करती मर्दन,
कोमल भावों की पीड़ा से तब,
विचलित होता अंतर्मन,
सुकुमार स्वप्नों की शय्या पर तब,
सौंदर्यसिक्त ह्रदय के मधुर कंठ से,
बोलो तुम,

क्या रखा इन बातों में, ले लो अपने हाथों में|
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