क्या रखा इन बातों में, ले
लो अपने हाथों में|
दूर कहीं मरीचिका की भांति,
आशा की कोई किरण न आती,
संघर्षों के कंटक पथ पर,
पदचापें जब मंद हो जातीं,
गंतव्य को ध्यान में रख तब,
अप्रतिम उत्साह में भर,
दृढ संकल्पित बोलो तुम,
क्या रखा इन बातों में, ले
लो अपने हाथों में|
अथक प्रयास करके तुम,
सम्पादित करते अपना काम,
मदद करते साथियों की,
आगे बढ़ता जिससे काम,
अवसर आता जब मूल्यांकन का,
पीछे रहता तुम्हारा नाम,
नीति नियमों की आड़ में,
भेदभाव के इस नग्न खेल से- अप्रतिहत,
तुम करते विश्वास,
प्रतिभा एवं लगन की अंततः,
होती नहीं कभी भी हार,
सतत सीख की स्वच्छ
प्रवृत्ति से प्रेरित तब,
बोलो तुम,
क्या रखा इन बातों में, ले
लो अपने हाथों में|
आकर्षण के पाशबद्ध,
भावों की गहराई से तुम,
जब प्रणय निवेदन करते हो,
प्रेयसी उसको खेल समझकर,
निर्दयता से करती मर्दन,
कोमल भावों की पीड़ा से तब,
विचलित होता अंतर्मन,
सुकुमार स्वप्नों की शय्या
पर तब,
सौंदर्यसिक्त ह्रदय के मधुर
कंठ से,
बोलो तुम,
क्या रखा इन बातों में, ले
लो अपने हाथों में|
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