मिलना मुद्दतों बाद, आपसे
यूँ हुआ,
बिछड़ने का एहसास भी, हमें
तब हुआ |
एक अनकही सी बात ही, नहीं
कही गयी,
ये गुफ्तगू हमारा, नहीं मुकम्मल हुआ|
चिराग़ अरमानों के जलते रहे,
मद्धम दिल में,
ये लौ तेरी यादों की, बुझी नहीं कभी|
आईने में देखा, तो फिर आप
आये नज़र,
मेरा जो मुझमें था, जाने खो
गया कहाँ?|
कोई पर्दा हमारे बीच, या
तेरी नज़रों का था फरेब,
जो दीदार मुझे तुझमें, तुझे
क्यूँ मुझमे हुआ नहीं |
सोचा था चलेंगे साथ, किसी
बस्ती सुकून की,
सफ़र ये भी कैसा, शुरू हुआ
कभी नहीं |
चले जायेंगे यूँ एक दिन,
मजबूर तुझसे दूर,
पूछोगे तड़प कर, वो मेरा
आशिक मिले कहाँ?|
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