आज़ादी नहीं कुछ काम की, जो
बस लिखी हो नाम की,
अभिवयक्ति कुंठित यदि रहे,
भय व्याप्त हो प्रतिकार का,
शोषित रहे जन-गण, गलत उपयोग
हो अधिकार का,
नि:शक्त हो युव-बल यदि, अवसर
नहीं रोज़गार के,
दुर्बल रहे बचपन, बिना
मज़बूत शिक्षा, स्वास्थ्य के,
ऐसी आज़ादी नहीं है काम की, ये
बस लिखी है नाम की|
कथनी-करनी में जहाँ, भेद
अति व्यापक रहे,
मन की सच्चाई नहीं, बस तन
की सज्जा पूज्य हो,
प्रतिभाओं की आहुति चढ़े, भेड़चाल
की दौड़ में,
नाकामियों के डर से, अगर
कोशिशें कमज़ोर हों ,
आज़ादी कहाँ, किस बात की? दीखती
है बस नाम की|
अंतर्मन यदि हो ग्रसित, अहंकार,
कटुता, क्रोध से,
संतोष-सागर तप्त हो, इच्छाओं
के ज्वार से,
आतुर नयन, आकुल ह्रदय हो,
प्रिय मिलन की आस में,
भाव संकुल, रुद्ध दृष्टि, संकल्प
के अभाव में,
आज़ादी नहीं, बंधन है वो,
किस काम की, बस नाम की|
कुछ ऐसा हो, चमत्कार हो,
प्रगति हो, विकास हो,
न भूख हो, न दर्द हो,
आतंक का सर्वनाश हो,
हर दिल में भरा प्यार हो,
मानो विश्व एक परिवार हो,
आज़ादी तभी होगी सफल, सच्ची-
सरल-अभिराम सी,
सर्व: हिताय, सर्व: सुखाय, जन-जन
के कल्याण की |