तू मुझे बता रहा है?
सोचो बहुत,
करो अथक प्रयत्न - सुख के
उन दो पलों के लिए,
वो एहसास हाथों से फिर भी
फिसला जाता है,
यूँ ही कहीं कभी परन्तु,
शुचिता का एक सरल प्रगाढ़
स्पर्श,
क्षण मात्र में मन रंजन कर
देता है,
सुकून के लिए अपनी इन बेहिसाब
कोशिशों के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान
नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?
सौंदर्य की जिस प्रतिमा की
खोज में हूँ मैं,
वह बाहर नहीं,
आकांक्षाओं के रोमांचक आवेग
से प्रद्वेलित,
दिल की खल्वतों में ही कहीं
छिपी है,
तमाम चेहरों में उसकी मुसलसर
जुस्तजू के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान
नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?
जो दिखता है सामने से,
अक्सर वो होता नहीं है,
कितनी बार गलत समझा गया
हूँ,
लेकिन,
सच की चादर ओढने से बेहतर
है,
सच को देखना और जीना,
लोगों को इल्म नहीं,
फिर भी सतह से ही,
समंदर की गहराई का अंदाज़
लगा देते हैं,
क्ष्दम मूल्यांकन की तमाम
चोटों और अपनी बेबाकी के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान
नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?
कितने अनुभव – कुछ रंज के,
कुछ रंच के,
कितने दृश्य- कुछ
प्रत्यक्ष, कुछ परोक्ष,
कितनी बातें – कुछ बोली,
कुछ अनबोली,
कहता नहीं, लिखता हूँ,
ताकि सब कुछ कह सकूं,
मेरी ख़ामोशी पर मेरी कमज़ोरी
समझी जाती है,
उन सारे अनकहे किस्सों को
लिखने के बावज़ूद,
जानता हूँ मैं ये, नादान
नहीं,
फिर भी,
तू मुझे बता रहा है?