हे शंकर, हे आशुतोष,
भाव बाधा मेरी दूर करो|
भाव बाधा मेरी दूर करो|
कितना भ्रम है, कितनी माया,
दंभ,लोभ के कंट-जाल से,
व्याकुल मन है, शिथिल है काया,
ज्ञान दीप की ज्योति जलाकर,
ह्रदय-कलुष का नाश करो,
नमामि शिव, हे रुद्रेश्वर,
त्वम् शरने, अभयं कुरूम|
दंभ,लोभ के कंट-जाल से,
व्याकुल मन है, शिथिल है काया,
ज्ञान दीप की ज्योति जलाकर,
ह्रदय-कलुष का नाश करो,
नमामि शिव, हे रुद्रेश्वर,
त्वम् शरने, अभयं कुरूम|
कितना संशय, कितनी असूया,
स्वार्थ भाव की अंधमता से,
संबंध विभाजित, मिलन अधूरा,
प्रेम-सरित के सलिल प्रवाह से,
प्यासे मन को सिक्त करो,
नमामि शम्भू, हे गंगाधर,
त्वम् शरने, प्रमुदित कुरूम|
स्वार्थ भाव की अंधमता से,
संबंध विभाजित, मिलन अधूरा,
प्रेम-सरित के सलिल प्रवाह से,
प्यासे मन को सिक्त करो,
नमामि शम्भू, हे गंगाधर,
त्वम् शरने, प्रमुदित कुरूम|
कितने स्वप्न, कितनी इच्छायें,
लक्ष्य की गुरुता से हतप्रभ,
कर्तव्य अनिश्चित, दुर्गम पथ है,
दृढ़ निश्चय के अजस्त्र स्रोत से,
विजयी-पथ प्रशस्त करो,
नमामि पशुपति, हे नीलकंठ,
त्वम् शरने, धीरम कुरूम|
लक्ष्य की गुरुता से हतप्रभ,
कर्तव्य अनिश्चित, दुर्गम पथ है,
दृढ़ निश्चय के अजस्त्र स्रोत से,
विजयी-पथ प्रशस्त करो,
नमामि पशुपति, हे नीलकंठ,
त्वम् शरने, धीरम कुरूम|
हे शंकर, हे आशुतोष,
भाव बाधा मेरी दूर करो|
भाव बाधा मेरी दूर करो|
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