तुम खामोश हो, तो रहो,
तुम्हारे सूने लफ़्ज़ों की
आवाज़, मुझ तलक फिर भी आती है|
तुम रूबरू नहीं, फिर भी
तुम्हारी यादों की स्याही,
मेरे दिल की कलम से, नज्में लिखवाती
है|
ढूंढता फिरता हूँ तुम्हे, हर
दूसरे चेहरे में,
तुम्हारी जुस्तजू के जुनून
ने, मुझे आशिक बना रखा है|
मोहब्बत को इबादत समझा, दिल-ओ-जान से चाहा तुम्हें,
मेरी शराफत को तुम, मेरी
नाकामी समझते रहे|
ये इश्क की चालें, ये तल्खी
बेनियाज़ी,
मुझे पता है ये, तुम मेरा इम्तिहान
ले रहे हो|
तुम और करीब
आओ, तो इज़हार करें हाल-ए-दिल,
जान से लगा के, जन्नत का
रुख करें|
तमाम उम्र कर लेंगे, तुम्हारा
इंतज़ार तो मगर,
शायद इतना टूट जायेंगे, तुम्हे आगोश में न ले पाएंगे|
ये तुम्हारी लम्बी ख़ामोशी, दबा
गुस्सा, एक अंदाज़ तो है,
जान लो मगर, नज़रों से गिरा
दिया तो उठा न पाउँगा|
ये दुनिया है गर एक झूठा
सपना, और ज़ज्बात महज़ खिलौने,
तो ये दर्द का एहसास, इतना
सच्चा क्यूँ है?
ऐ खुदा, तू तो कोई चालबाज़ जालिम
नहीं,
फिर जो मेरा हक है, क्यूँ
मयस्सर नहीं मुझे ?
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