Search

Thursday, January 31, 2019

तुम ही तो हो


सुबह की खिलखिलाती किरणों में,
जब देखी मैंने परछाई फूल की,
और फिर देखा,
स्वाभिमान की आभा से मंडित,
कुसुमित उस फूल को,
जो था अपनी गरिमा में शोभायमान,
आहिस्ता से, दिल के कोने से कहीं,
ये आवाज़ आई,
यह गर्वित, पुष्पित शोभा तुम ही तो हो|

चलते-चलते,
जब थक गया मैं,
स्वेद-स्नात, हैरान और परेशां,
सोचते हुए ये,
कैसा ये सफ़र, मंजिल है कहाँ?
उस समय जो चली शीतल मंद बयार,
दिल के कोने से
, आहिस्ता से,
वही आवाज़ आई,
ये ठंडा एहसास तुम ही तो हो|

ज़िन्दगी की जंग में,
लड़ता रहा, गिरता रहा,
गिरते डरते, उठते, सीखते हुए,
अनवरत प्रयासों से,
जब पार की जीत की वो रेखा,
मेरे मन ने मुझसे, आहिस्ता से,
फिर कहा,
तमाम हासिलों की धडकनों में,
तुम ही तो हो|

सुकून की तलाश में भागता रहा पाने को,
दौलत और शोहरत,
बहकता रहा,
न जाने किन गलियों में,
अनेकों उपलब्धियों-प्रशस्तियों के बावजूद,
जब वो मुखड़ा देखा तुम्हारा,
अंतर्मन से, आहिस्ता से,
फिर वो ही आवाज़ आई,
सुकून तुम ही तो हो|

2 comments:

Gunjan Priya said...

soubhagyshali hain aap ki apko wo perfection mil gaya hai...ham to samjhte hai ...wo sirf imagination me aata hai..

Chaitanya Jee said...

Shayad hum bhi uski talash me hi hon :)

Creative Commons License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.