आओ बताएं तुम्हें ऐ दोस्त,
पवित्रता बेजान मूर्ति में नहीं, झुकने वाले मस्तक में है,
ढूंढते कहाँ हो देवालयों
में?
भगवान् तो दिलों में बसते
हैं|
रोने के डर से कहीं खुद से
अनजान न रहना|
आंसू रुलाते ही नहीं, खुद
से खुद को मिलाते भी हैं,
देखो कितनी अजीब सी बात है ना,
भरोसा जब होता है तो
बेबुनियाद,
और जो टूट जाये तो खुदा पे
भी नहीं होता|
निर्बाध हो सफ़र तन्हा ही क्यूँ न हो, एक अलग ही मज़ा है इसका,
आखिर ये हवाएं, खुला आसमान
और झूलते पेड़ भी तो हमसफ़र ही हैं|
क्या बयाँ करें दर्द-ए-दिल
तुमसे ऐ दोस्त,
उसकी कमर तोड़ मेहनत और एक कप चाय की तलब,
दिहाड़ी कितना जोखिम भरा काम
है, हमने एक मजदूर की आँखों में देखा|
खामोश रहे जब उसने तौहीन की हमारी,
खता ही क्या थी मेरी, औकात
ही क्या थी उसकी,
फिर भी बदला नहीं लेंगे,
इतने बड़े बन जायेंगे, वो
खुद छोटा हो जायेगा |
क्या बताऊँ किस कशमकश में
हूँ,
ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ – जी भर कर, खुल कर,
फिर भी रखता हूँ खुद को –
बचा के, संभाल कर,
भावनाओं के ज्वार में कहीं
बह ही न जाऊं|
हारने में पीड़ा होती है - हताशा और थकान,
उस जीत का भी क्या फायदा मगर –
जिसमें “तुम” हार जाओ |
आओ कुछ फैसले करें दोस्त,
जो गुज़र गया वो वक़्त है, जो आएगा वो अवसर,
तय हमें करना है कि,
वक़्त की घड़ियाँ चुनें या
अवसरों के पल|
जो लुट गए अमीर हुए, जो बिक गए फ़क़ीर,
हम इसी डर में बैठे हैं अब
तक,
न जाने लुट के फ़क़ीर बनें या
अमीर|
सीख मेरी ये ही है तुम्हें
ऐ दोस्त,
तरक्की करना, आगे बढ़ना, चढ़ सीढियां डर सीढियां,
अपने अन्दर के मासूम को लेकिन
कभी बड़ा न करना|
कविता पढने में सुन्दर लगती हो, सुनने में प्यारी,
जान लो मगर,
सच्ची कविता वो ही है दरअसल,
जो लिखी नहीं “जी” जाती हो |