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Tuesday, June 23, 2009

अज्ञात सी तड़पन

मैंने कब कहा कि लौकिक प्रेम ही लक्ष्य है?
वह एकमात्र सत्य भी नहीं, वास्तविकता भी नहीं,
फिर इस अज्ञात सी तड़पन का प्रयोजन क्या है?
इश्क हबीबी निरा दीवानापन है? या इश्क हकीकी की प्रतिच्छाया?
जुस्तजू मुझे उस विशिष्ट प्रियतम की है,
या अपने ही अनजाने वजूद की ?
जो न जाने कहाँ कहाँ बिखरा पड़ा है!
यदि क्षड़ की वास्तविकता ही सत्य है?
तो क्या यह टीस,
अपना सा कुछ खो जाने का दर्द स्वप्न मात्र है?
कैसी अनबूझी पहेली है ये,
मेरी ज़िन्दगी,
इससे ज्यादा और मै सह नहीं सकता,
क्या कहूं?
अब और कुछ कह नहीं सकता,
मेरा निजी सत्य तो यही है,
ऐ मेरी कोयल,
तेरे बिन अब मै जी नहीं सकता

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