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Tuesday, June 23, 2009

मंजिल

मेरी कश्ती थी मझधार में,
मंजिल का पता न था,
सर्द हवाओं के थपेडों ने,
जिस ओर धकेला मै चला गया,
ज़ुल्मत-ए-शब में दफातन
नूर दिखा तेरे चिराग-ए-दिल का,
दिल की कोयल ने मुझसे कहा,
तेरी मंजिल-ए-सहर यही है,
हवाएं भी रुख बदलेंगी,
नूर-ए-आफताब न हुआ तो क्या हुआ?
चिराग-ए-दिल तो जल गए!

2 comments:

Mahesh Chayel said...

impressive sirji..
Lot of meaning in those few lines..

Chaitanya Jee said...

Thanks mahesh,

Nice to know that you got many meanings out of those lines

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